ओटीटी vs थियेटर डिबेट पर रितेश देशमुख का सवाल: फिल्में चल नहीं रहीं फिर 600-700 करोड़ रुपए का बिजनेस कैसे? बोले- सिनेमा कभी खत्म नहीं होगा

ओटीटी vs थियेटर डिबेट पर रितेश देशमुख का सवाल:  फिल्में चल नहीं रहीं फिर 600-700 करोड़ रुपए का बिजनेस कैसे? बोले- सिनेमा कभी खत्म नहीं होगा


4 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

  • कॉपी लिंक

एक्टर रितेश देशमुख की पहचान एक कॉमिक एक्टर की है। हालांकि, अपने दो दशक के करियर में उन्होंने कई तरह का रोल निभाए हैं। हाल ही रिलीज हुई अजय देवगन स्टारर ‘रेड-2’ में रितेश विलेन के तौर पर नजर आ रहे हैं। फिल्म में दादा मनोहर भाई के रोल के लिए उन्हें खूब तारीफ भी मिल रही है। इससे पहले उन्होंने फिल्म ‘एक विलेन में’ निगेटिव रोल निभाया था।

दैनिक भास्कर से बातचीत में रितेश और ‘रेड-2’ के डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता ने बॉलीवुड फिल्मों के नहीं चलने और ओटीटी बनाम थियेटर डिबेट पर अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है।

सवाल- बॉलीवुड पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। इंडस्ट्री पर भेड़चाल, महंगे टिकट, जमीनी कहानी न बनाने का आरोप लग रहा है। कहा जा रहा है कि सिनेमा खत्म हो रहा है?

राजकुमार- देखिए, जब से सिनेमा बना है, तबसे सिनेमा के खत्म होने का सवाल उठता रहा है। चाहे 20 का दौर हो, ग्रेट डिप्रेशन का समय, टेलीविजन या वीडियो कैसेट का दौर आया हो, हर बार यही कहा गया। जहां तक जमीनी कहानियों की बात है तो इसमें थोड़ी बहुत सच्चाई है। राइटर, डायरेक्टर, एक्टर, प्रोड्यूस हम सबको इंडिविजुअल और बतौर इंडस्ट्री मिलकर सोचना पडे़गा। हमें अपने अंदर झांकना होगा और देखना होगा कि क्या सच्चाई है। जो सवाल उठाए जा रहे हैं, अगर वो सच है तो उस पर काम करने की जरूरत है।

रितेश- मैं राजकुमार जी पूरी तरह सहमत हूं। लेकिन मेरे मन में सवाल है। पैंडेमिक के पहले हिंदी डब ‘बाहुबली’ ऐसी फिल्म थी, जिसने 500 करोड़ रुपए का बिजनेस किया। उसके पहले किसी भी फिल्म ने इतना नहीं कमाया था। लेकिन कोविड के बाद 5-6 ऐसी फिल्में हैं, जिन्होंने 500 करोड़ रुपए से ज्यादा का बिजनेस किया है। सवाल ये है कि अगर लोग थियेटर जा नहीं रहे हैं तो ये धंधा हुआ कैसे? इसका जवाब है कि लोग थियेटर जा रहे हैं लेकिन ये सोचकर जा रहे हैं कि उन्हें कौन सी फिल्में देखनी हैं। वरना हम लोग 70-80 या 90 करोड़ रुपए का धंधा करते थे या उसमें भी गिरावट होती थी।

‘पठान’, ‘जवान’, ‘गदर’, ‘स्त्री-2’, ‘एनिमल’, ‘पुष्पा 2’, ‘छावा’ इन सारी फिल्मों ने कमाल की बॉक्स ऑफिस कमाई की है। इन सारी फिल्मों का जॉनर देखा जाए तो सारी फिल्में अलग जॉनर की हैं। अगर कोई ये कहता है कि सिर्फ बड़े स्टार ऐसा कर पा रहे हैं तो मैं उससे सहमत नहीं हूं। बहुत सारे और भी एक्टर हैं, जिनकी फिल्मों ने कमाई की है। इसका मतलब ये है कि अगर लोगों को फिल्म पसंद आती है तो वो देखते हैं। उस फिल्म का ट्रेलर एक जिज्ञासा जगा पा रहा है।

मैंने ऊपर जितनी भी फिल्मों का नाम लिया, वो सारी ही फिल्मों के टिकट महंगे रहे हैं। ऐसे में टिकट प्राइस को लेकर जो सवाल था उसके लिए मेरा मानना है कि अगर फिल्म अच्छी है तो लोग पैसे देते हैं। सबसे पहली रिक्वायरमेंट अच्छी फिल्म बनाने की होती है। अच्छी फिल्म बनाना जितना मुश्किल है, उतना ही मुश्किल एक अच्छा प्रोमो काटना होता है। आप कितनी भी अच्छी फिल्म बनाओ, अगर प्रोमो बुरा काटोगे तो फिल्म फ्लॉप हो जाएगी।

सवाल- इस वक्त बड़े-बड़े स्टार की फिल्में नहीं चल पा रही है। आप दोनों को क्या लगता है कि इसकी एक वजह ओटीटी है?

रितेश- मुझे ऐसा नहीं लगता है। वक्त के साथ चीजें बदलती हैं। उदाहरण के लिए दैनिक भास्कर पहले पेपर था। आज डिजिटल हो गया है। ऐसे ही हर चीज का एडेप्टेशन होना ही है। फिल्मों के साथ भी ऐसा ही है। बहुत सारी चीजें हैं जो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अच्छे से मोनेटाइज हो जाती है। क्रिकेट को देखिए, पहले इनके टीवी राइट्स महंगे होते थे और डिजिटल राइट्स कम बिकते थे।

आज आईपीएल के कारण डिजिटल राइट्स बहुत ज्यादा मोनेटाइज होता है और सैटेलाइट राइट्स उससे कम। इसका ये मतलब नहीं होता कि पैसा बन नहीं रहा है। पैसा बन रहा लेकिन कहीं और बन रहा है। फिल्मों के लिए पहले सिर्फ थियेटर था। फिर सैटेलाइट आया और अब डिजिटल प्लेटफॉर्म है। सैटेलाइट और डिजिटल एवेन्यू को हमें मिलाकर देखना चाहिए।

मुझे लगता है कि पैंडेमिक के बाद बदलाव आया है। ऑडियंस देख रही है कि कौन सी फिल्में है, जिसे वो अपने घर में बैठकर देखना चाहते हैं। अगर किसी फिल्म का ट्रेलर ऑडियंस को बहुत अच्छा नहीं लगता तो वो सोचते हैं जब आएगी, तब देख लेंगे। ऐसे में ये बहुत जरूरी है कि फिल्म का ट्रेलर बहुत अच्छा हो। अगर ट्रेलर लोगों को पसंद नहीं आया तो आप फिल्म को कितना भी प्रमोट करें, इंटरव्यू दें, वो नहीं चलेगी।

राजकुमार- फिल्ममेकर और प्रोड्यूसर के नजरिए से रेवेन्यू स्ट्रीम की जो बात है, उससे मैं रितेश से सहमत हूं। मैं थियेटर में फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं। थियेटर की वजह से मैं फिल्ममेकर बना। बतौर स्टोरीटेलर, राइटर-डायरेक्टर मैं जब कोई फिल्म लिखता हूं तो मैं मीडियम नहीं सोचता।

मैं एक ही मीडियम का सोचता हूं क्योंकि मुझे उसी से प्यार था। मेरी कोशिश होती है कि अगर मैं कोई फिल्म लिख रहा हूं तो वो थियेटर में रिलीज हो। जहां तक ऑडियंस की बात है, मैं उम्मीद करूंगा कि हमारी जो भी फिल्म हो उसे वो पहले थियेटर में देखें। उसे बाद वो बाकी के रेवेन्यू स्ट्रीम पर देखें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *