4 मिनट पहलेलेखक: वर्षा राय
- कॉपी लिंक
‘द बंगाल फाइल्स’ को लेकर पश्चिम बंगाल में काफी विरोध हो रहा है। फिल्म की एक्ट्रेस और प्रोड्यूसर पल्लवी जोशी ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान बताया कि उन्हें पहले से ही पता था कि समस्याएं आएंगी। इस लिए उनकी तरफ से भी लीगल एक्शन लिया जा रहा है। एक्ट्रेस ने यह भी बताया कि ‘द बंगाल फाइल्स’ की तैयारी ‘द कश्मीर फाइल्स’ से पहले ही शुरू हो गई थी। पेश है पल्लवी जोशी से हुई बातचीत के कुछ खास अंश ..

क्या ‘द कश्मीर फाइल्स ‘ की सफलता के बाद ही आपको ‘द बंगाल फाइल्स’ बनाने का आइडिया आया। क्या इस फिल्म से एक और नेशनल अवॉर्ड मिलने की संभावना है?
नेशनल अवॉर्ड का तो पता नहीं, लेकिन ‘द बंगाल फाइल्स’ की तैयारी हमारी ‘द कश्मीर फाइल्स’ से पहले ही शुरू हो चुकी थी। जब हमने ‘द ताशकंद फाइल्स’ बनाई थी तभी से हमारे दिमाग में एक ट्रियोलॉजी का आइडिया आया था। हमारी सोच थी कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक में जो तीन शेर हैं, वे तीन मूल अधिकारों राइट टू ट्रुथ, राइट टू जस्टिस और राइट टू लाइफ के प्रतीक हैं।
.इसी आधार पर ‘द ताशकंद फाइल्स’ में हमने लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु पर सवाल उठाया। ‘द कश्मीर फाइल्स’ में न्याय का प्रश्न रखा और अब ‘द बंगाल फाइल्स’ में जीवन के अधिकार पर कहानी कही है।
यह ट्रियोलॉजी फिल्म कम और फाइल्स शब्द जुड़ने से डॉक्यूमेंट्री ज्यादा लगती है, आप क्या कहना चाहेंगी?
ये पूरी तरह रिसर्च-बेस्ड फिल्में हैं। अब तक हमने जिन तथ्यों को दिखाया है, वे असलियत में घटे हैं। हमने बस उन्हें फीचर फिल्म का रूप दिया है। सैकड़ों किरदारों को पर्दे पर नहीं लाया जा सकता, इसलिए हम 4–5 मुख्य किरदारों और घटनाओं को लेकर कहानी कहते हैं। यही हमारी सिनेमैटिक लिबर्टी है।

ट्रेलर लॉन्च होते ही विवेक अग्निहोत्री पर FIR हुई और गोपाल मुखर्जी के पोते ने आरोप लगाया कि फिल्म में गोपाल जी और बंगाल की छवि खराब करने की कोशिश की गई है, क्या कहेंगी?
राजनीतिक फिल्मों में राजनीतिक आरोप लगते ही हैं। हमें पता था कि समस्याएं आएंगी। इसके लिए हम लीगल एक्शन ले रहे हैं।
क्या फिल्म की शूटिंग के दौरान भी राजनीतिक रुकावटें आईं?
राजनीतिक तो नहीं, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि हम बंगाल पर फिल्म बना रहे थे लेकिन वहीं शूट नहीं कर पाए। हमें पहले से अंदाजा था कि हमें शूट करने की परमिशन नहीं मिलेगी। इसीलिए कोलकाता और मुर्शिदाबाद के सेट्स मुंबई में बनाने पड़े, जिस पर ज्यादा खर्च भी हुआ।
TMC और ममता बनर्जी को विवेक अग्निहोत्री से क्या दिक्कत है?
पता नहीं, लेकिन हां, ये बातें सुलझेंगी नहीं। मुझे नहीं लगता कि कोई बैठकर इस पर चर्चा करने को तैयार है। लोग लीगल रास्ता ले रहें हैं तो हम भी वैसा ही जवाब देंगे।
एक इंटरव्यू में शाश्वत चटर्जी ने कहा कि उन्हें तो कहानी ही नहीं पता थी, क्या यह सही है ?
कोई भी एक्टर बिना स्क्रिप्ट जाने फिल्म के लिए हां नहीं करता। पता नहीं किस दबाव में उन्होंने ये बयान दिया है, मैं बस यही कहूंगी कि उन्हें थोड़ी जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इस तरह के गलत स्टेटमेंट नहीं देने चाहिए।
मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक माहौल को देखते हुए फिल्म कितनी प्रासंगिक है?
बहुत ज्यादा प्रासंगिक है। वर्ना न तो हमें रोका जाता और न ही इतनी बड़ी कंट्रोवर्सी होती।

आलोचकों का कहना है कि आपने कश्मीर फाइल्स से प्रॉफिट तो कमा लिया, लेकिन कश्मीरी पंडितों के लिए क्या किया ?
कश्मीरी पंडितों से किसी ने अब तक बात ही नहीं की थी। उन्हें पैसों की नहीं बल्कि अपने साथ हुए नरसंहार को मान्यता मिलने की जरूरत थी। हमारी फिल्म से पहली बार उनके दर्द को पहचान मिली।
फिल्म में एक सीन है जिसमें एक गिरिजा नाम की महिला का आरी से गला काटा जाता है। उनके भाई ने हमें चिट्ठी लिखी कि फिल्म देखने के बाद उसका परिवार पहली बार इस बारे में खुलकर रो पाया। ऐसे बहुत सारे लोगों के मैसेज आए। मैं उन्हीं की सुनूंगी जिनके लिए हमने फिल्म बनाई है। बाकी लोग क्या कहते हैं, यह बात मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती है।