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मूवी रिव्यू- ठग लाइफ: मणिरत्नम और कमल हासन की जोड़ी इस बार जादू नहीं चला पाई, भारी-भरकम फिल्म, लेकिन खोखली कहानी


3 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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कमल हासन की फिल्म ‘ठग लाइफ’ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। डायरेक्टर मणिरत्नम और कमल हासन की 36 साल बाद की वापसी को लेकर दर्शकों की उम्मीदें सातवें आसमान पर थीं। ‘नायकन’ जैसी आइकॉनिक फिल्म देने वाली जोड़ी से जब ‘ठग लाइफ’ आई, तो हर किसी को लगा कि यह फिल्म तमिल सिनेमा का नया बेंचमार्क साबित होगी, लेकिन भारी-भरकम बजट, जबरदस्त स्टारकास्ट और ए.आर. रहमान के संगीत के बावजूद फिल्म एक कमजोर और उलझी हुई गाथा बनकर रह गई। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 1.5 स्टार की रेटिंग दी है।

फिल्म की कहानी क्या है?

‘ठग लाइफ’ की कहानी रंगाराया शक्तिराजू (कमल हासन) नाम के एक गैंगस्टर के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने अतीत की परछाइयों से जूझ रहा है। वह अमर (सिलंबरासन TR) को पालता है, लेकिन समय के साथ गलतफहमियां और साजिशें इन दोनों के रिश्ते को तोड़ देती हैं। एक समय आता है जब शक्तिराजू का सबकुछ उलट-पुलट हो जाता है, और फिर शुरू होती है बदले की कहानी, लेकिन ये कहानी ही फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी साबित होती है।

स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?

कमल हासन ने अपने किरदार को संजीदगी से निभाया है। उनकी स्क्रीन प्रेजेंस अब भी बेहतरीन है, लेकिन किरदार को जिस तरह से लिखा गया है, वह कमल जैसे दिग्गज अभिनेता की क्षमताओं को पूरी तरह इस्तेमाल नहीं करता। अमर के किरदार में सिलंबरासन अच्छे लगे, लेकिन उन्हें एक भी ऐसा सीन नहीं मिला जो याद रह जाए।

तृषा और ऐश्वर्या लक्ष्मी जैसी टैलेंटेड ऐक्ट्रेसेज को बहुत ही सीमित और असरहीन रोल मिले। ‘शुगर बेबी’ जैसे गाने भी उनके किरदार को कोई नई दिशा नहीं दे पाते। जोजू जॉर्ज और अशोक सेलवन जैसे बहुत सारे कलाकारों को छोटे-छोटे किरदार में लेकर उन्हें बर्बाद किया गया है। किसी का भी किरदार सही ढंग से न्याय नहीं कर पाता है। यह सिर्फ कमल हासन और सिलंबरासन की फिल्म रह जाती है।

फिल्म का डायरेक्शन और तकनीकी पक्ष कैसा है?

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि मणिरत्नम का जो ‘टच’ दर्शक ढूंढते हैं, वह कहीं नहीं मिलता। कहानी में नयापन नहीं है और न ही भावनात्मक गहराई। शक्तिराजू और अमर के बीच का टकराव एकदम सतही लगता है। ट्रैक धीमा है और इमोशनल चार्ज नदारद। वहीं, रवि के. चंद्रन की सिनेमैटोग्राफी फिल्म की जान है। हर फ्रेम खूबसूरत है, लोकेशन भव्य हैं और विजुअल्स फिल्म को सिनेमाई ग्रेस जरूर देते हैं, लेकिन श्रीकर प्रसाद की एडिटिंग बिखरी हुई लगती है।

फिल्म की लंबाई थका देने वाली है। खासतौर पर सेकेंड हाफ में जहां बदले की कहानी आगे बढ़ती है, लेकिन बिना किसी इमोशनल पंच या क्लाइमैक्स हाई के। ट्रेन स्टेशन फाइट सीक्वेंस थोड़ा बहुत असर छोड़ता है, लेकिन उसके बाद के सारे बदले वाले सीन सपाट और बेमकसद लगते हैं।

फिल्म का संगीत कैसा है?

संगीतकार ए.आर. रहमान का जादू गायब है। हालांकि, ‘अच्छा वन्ने पूव्वा’ गाना थोड़ी राहत देता है, लेकिन बाकी गाने फिल्म की गति को धीमा करते हैं। रहमान का बैकग्राउंड स्कोर काफी हद तक नदारद सा लगता है। एक गैंगस्टर रिवेंज ड्रामा में जो ग्रेविटी म्यूजिक से आनी चाहिए थी, वह बिल्कुल मिसिंग है।

फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं?

अगर आप मणिरत्नम या कमल हासन के कट्टर फैन हैं, तो एक बार फिल्म देख सकते हैं, लेकिन सिर्फ उनके लिए। आम दर्शकों के लिए यह फिल्म निराशाजनक साबित हो सकती है। फिल्म में न क्लाइमेक्स है, न इमोशनल गहराई, न यादगार संवाद और न ही रिवेंज ड्रामा का वो ऐड्रिनलिन।

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