मूवी रिव्यू- सरजमीन,: देश बनाम बेटा — जब एक पिता की आंखों में आंसू और सीने पर वर्दी हो, तो हर फैसला इम्तिहान बन जाता

मूवी रिव्यू- सरजमीन,:  देश बनाम बेटा — जब एक पिता की आंखों में आंसू और सीने पर वर्दी हो, तो हर फैसला इम्तिहान बन जाता


8 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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‘नादानियां’ के बाद इब्राहिम अली खान की दूसरी फिल्म ‘सरजमीन’ ओटीटी प्लेटफॉर्म JioHotstar पर रिलीज हो चुकी है। धर्मा प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी इस फिल्म का डायरेक्शन बोमन ईरानी के बेटे कयोज ईरानी ने किया है। इस फिल्म में इब्राहिम अली खान के साथ पृथ्वीराज सुकुमारन और काजोल की अहम भूमिका है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 17 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 3 स्टार की रेटिंग दी है।

फिल्म की कहानी क्या है?

ब्रिगेडियर विजय मेनन (पृथ्वीराज) के लिए देश सबसे ऊपर है। लेकिन जब उसका बेटा हर्मन (इब्राहिम), एक मिशन के दौरान अगवा होता है और बदले में आतंकवादी अपने साथी की रिहाई मांगते हैं, तो विजय के सामने आता है सबसे कठिन फैसला।

पत्नी मेहरनिशा (काजोल) के कहने पर वो रिहाई के लिए मान तो जाता है, लेकिन आखिरी वक्त पर देश की याद बेटे पर भारी पड़ती और वो फायरिंग कर देता है। आतंकवादी हर्मन को फिर साथ ले जाते हैं।

8 साल बाद हर्मन लौटता है, लेकिन अब उसका मकसद बदल चुका है। मां उसे गले लगाती है, लेकिन पिता के शक खत्म नहीं होते। यहीं से कहानी मोड़ लेती है। क्या वो वाकई बदल चुका है या दुश्मन के हाथों मोहरा बन चुका है?

स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?

पृथ्वीराज ने आर्मी अफसर के रोल में ठहराव और गरिमा के साथ दमदार काम किया है। काजोल मां के रोल में इमोशनल गहराई लाती हैं और क्लाइमेक्स में सरप्राइज भी। इब्राहिम ने पिछली फिल्म से बेहतर काम किया है, पर अब भी उन्हें और मेहनत की जरूरत है। हर्मन के किरदार की इंटेंसिटी पूरी तरह महसूस नहीं होती।

फिल्म का डायरेक्शन और तकनीकी पक्ष कैसा है?

कयोज ईरानी ने डेब्यू डायरेक्शन में देशभक्ति और पितृत्व के टकराव को दिखाने की कोशिश की है। बीच-बीच में ‘शक्ति’ और ‘फना’ जैसी फिल्मों की झलक मिलती है। कहानी में कई ट्विस्ट हैं, जिसमें से कुछ असर छोड़ते हैं, कुछ ज्यादा लगते हैं। क्लाइमेक्स इमोशनल और शॉकिंग है, लेकिन मिड पार्ट में ग्रिप थोड़ी ढीली पड़ती है।

फिल्म के डायलॉग्स “सबसे आगे देश, इसका मतलब ये नहीं कि सबसे पीछे बेटा’’ और “मैं भूल गया… मेरा बेटा मुझसे अलग है, वो मेरी तरह बदलने से नहीं डरता, मुश्किलों से लड़ता है”, चुभते और दिल को छूते भी हैं।

फिल्म का म्यूजिक कैसा है?

गाने सिचुएशन के हिसाब से हैं, लेकिन यादगार नहीं। बैकग्राउंड स्कोर औसत है।

फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं?

फिल्म दिखाती है कि जब एक फौजी की वर्दी और एक पिता का दिल आमने-सामने खड़े हों, तो हर फैसला आसान नहीं होता। अगर इमोशनल ड्रामा, पिता-पुत्र संघर्ष और देशभक्ति से जुड़ी फिल्में पसंद हैं। तो यह फिल्म आपको अच्छी लगेगी, हालांकि ज्यादा ट्विस्ट और धीमी रफ्तार की कहानी ध्यान भटकाती है।

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