भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री में अबरार अल्वी एक ऐसा नाम थे, जो पटकथा लेखक के साथ-साथ निर्देशक के रूप में पहचाने जाते थे। अबरार अल्वी का नाम आते ही फिल्मी दुनिया में बहुआयामी प्रतिभा के धनी गुरु दत्त का नाम भी जुड़ जाता है, क्योंकि दोनों एक-दूसरे के पूरक थे। या यूं कहे कि गुरु दत्त साहब की फिल्मों की आत्मा अबरार अल्वी थे। अबरार अल्वी ने सिनेमा को न केवल उत्कृष्ट संवाद और पटकथाएं दीं, बल्कि निर्देशन में भी अपना अमिट योगदान दिया। आज 01 जुलाई को अबरार अल्वी साहब की जन्मतिथि मनाई जा रही है। इस खास मौके पर जानते हैं उनके बारे में।
रोमांटिक लेखन में माहिर थे अबरार अल्वी
अबरार अल्वी का जन्म 01 जुलाई 1927 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में हुआ था। महाराष्ट्र के नागपुर से उन्होंने अपने कॉलेज की पढ़ाई की। उसी दौरान वह थिएटर के लिए लेखन और निर्देशन का काम करने लगे। थिएटर करने के वक्त अबरार साहब की मुलाकात एक महिला मित्र से हुई, जिनके लिए वो लंबे-चौड़े रोमांटिक प्रेम पत्र लिखा करते थे। इस चीज ने उनके लेखन को और धार दी, जिसका एहसास उन्हें भी हुआ था। इन्हीं कारणों की वजह से उन्हें बॉम्बे सिनेमा में प्रवेश मिला।

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गुरु दत्त और अबरार अल्वी
– फोटो : एक्स
गुरु दत्त साहब से कैसे हुई मुलाकात?
अबरार अल्वी और गुरुदत्त की मुलाकात संयोगवश हुई, लेकिन यही मुलाकात भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ बन गई। साल 1953 में गुरु दत्त साहब अपनी पहली फिल्म ‘बाज’ के सेट पर व्यस्त थे। उसी दौरान अबरार अल्वी के साथ उनकी एक आकस्मिक मुलाकात हुई। गुरु दत्त को फिल्म के एक दृश्य को लेकर समस्या थी और अबरार ने अपनी राय सुझाई। ये राई उन्हें इतनी पसंद आई कि उन्होंने अबरार अल्वी को साल 1954 में आई ‘आर-पार’ फिल्म के लेखन की जिम्मेदारी सौंप दी। इसी के बाद से दोनों एक-दूसरे के पूरक बन गए और एक खास मित्र भी हो गए।

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अबरार अल्वी
– फोटो : अमर उजाला
अबरार अल्वी ने सबसे पहले साल 1954 में रिलीज हुई फिल्म ‘आर-पार’ के संवाद लिखे। इस फिल्म के संवादों ने दर्शकों को आकर्षित करने का काम किया। उनके लेखन में आम आदमी की भाषा, जीवन का दर्द, हास्य और भावनात्मक गहराई की झलक दिखती थी। इस फिल्म के अलावा उन्होंने ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’, ‘सीआईडी’, ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, ‘लैला मजनू’ जैसी फिल्मों के लिए संवाद और पटकथा लेखन का काम किया।
निर्देशन करियर में भी छा गए अबरार अल्वी
साल 1962 में रिलीज हुई ‘साहिब बीबी और गुलाम’, जो अबरार अल्वी के करियर का सबसे खास पल रहा। इस फिल्म का निर्देशन अबरार अल्वी ने किया था, जो गुरु दत्त के प्रोडक्शन में बनी थी। हालांकि, फिल्म में गुरु दत्त साहब के निर्देशन की भी झलक दिखती है। इस फिल्म ने लोगों का दिल जीत लिया, जिसके लिए अबरार अल्वी को फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वहीं भारत सरकार ने इस फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी दिया और फिल्म को उस साल ऑस्कर में भी नामांकित किया गया था।

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अबरार अल्वी और गुरु दत्त
– फोटो : एक्स
जब एक फिल्म के लिए दुश्मन बने अबरार-गुरु दत्त?
‘साहिब बीबी और गुलाम’ की सफलता ने सभी को हैरान कर दिया था। हालांकि, इस फिल्म के निर्देशन को लेकर कई सवाल उठे थे। यह फिल्म गुरु दत्त के मिजाज की थी। इसलिए लोगों को लगा कि इसे गुरु दत्त ने छुप-छुपा के बिना अपना नाम बताए डायरेक्ट किया है। दूसरी वजह थी कि फिल्म के कुछ हिस्सों और गानों को गुरु दत्त ने सचमुच डायरेक्ट किया था। हालांकि इस फिल्म के निर्देशन का क्रेडिट गुरु दत्त ने ले लिया था। इस बात से अबरार अल्वी दुखी रहते थे, जिससे दोनों के बीच अनबन हो गई थीं। लेकिन दोनों की दोस्ती पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा।
अंतिम समय में भी कायम रही गुरु दत्त और अबरार अल्वी की दोस्ती
अबरार अल्वी और गुरु दत्त साहब की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों एक-दूसरे के जीवन के हर सुख-दुख को बहुत करीब से जानते थे। ये बात तब कि है, जब गीता दत्त से गुरु दत्त की लड़ाई चल रही थी, जो अबरार को मालूम थी और उन्होंने दोनों की सुलह कराने की खूब कोशिश की थी। एक दिन जब अबरार, गुरुदत्त से मिलने उनके घर पहुंचे, तो वो शराब पी रहे थे। इसके बाद गुरुदत्त ने पत्नी से फोन में कहा कि वो अपनी बेटी से मिलना चाहते हैं, इस पर अभिनेता ने वॉर्निंग दी कि अगर बेटी को नहीं भेजा तो वो आत्महत्या कर लेंगे। इसके बाद अबरार अपने घर चले गए और उसी रात गुरु दत्त साहब ने आत्महत्या कर ली थी। हालांकि, अबरार अल्वी ने जब गुरु दत्त को इस हालत में देखा तो उनके मुंह से निकला कि गुरु दत्त ने अपने को मार डाला है। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि दोनों मरने के तरीकों के बारे में बातें किया करते थे। इसके साथ ही कई बार दोनों इसका परीक्षण भी कर चुके थे।
82 की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए अबरार अल्वी
1980 और 90 के दशक में अबरार अल्वी फिल्म संस्थानों में गेस्ट लेक्चरर के रूप में भी सक्रिय थे। अबरार साहब ने अपने करियर में कुछ फिल्मों का निर्देशन किया, लेकिन उनकी लेखनी की जादूगरी ने सिनेमा जगत में एक अनूठी क्रांति लाने का काम किया था। अबरार साहब का 82 वर्ष की उम्र में 18 नवंबर 2009 को मुंबई में निधन हो गया था।