जोधपुर में जन्मी और बरेली व मेरठ में पली-पढ़ीं चित्रांगदा सिंह को हिंदी सिनेमा से आंख-मिचौली खेलने की शुरू से आदत रही है। जब वह धमाकेदार काम करती हैं और लोग उन्हें तलाशते हैं, तो वह गायब हो जाती हैं। और, फिर एकाएक लौट आती हैं एक और धमाका करने। चित्रांगदा से एक खास मुलाकात।

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चित्रांगदा सिंह
– फोटो : इंस्टाग्राम @chitrangda
पश्चिम बंगाल बहुत अद्भुत है। खासतौर से कोलकाता शहर। इस शहर से मेरी तमाम यादें पहले की भी जुड़ी हैं। दुर्भाग्य से इस बार वेब सीरीज ‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ में मेरे हिस्से की अधिकतर शूटिंग यहां मुंबई में ही अधिक हुई। हां, कुछ दिन के लिए गई थी मैं कोलकाता, इस सीरीज की शूटिंग करने।

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चित्रांगदा सिंह
– फोटो : इंस्टाग्राम @chitrangda
आपने कहा आपकी यादें कोलकाता से पहले की भी हैं, क्या हैं वे?
फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ के लिए गई थी मैं वहां। और, अभिषेक बच्चन, फिल्म के हीरो, मेरे साथ थे ही। उनको कोलकाता तो ऐसे पता है जैसे वह वहीं बचपन से खेले-कूदे हैं। गली, गली वहां की पहचानते हैं। उन्होंने मुझे शानदार बंगाली खाना खिलाया। वहां के एक प्रसिद्ध मंदिर भी ले गए। कई बार तो लगता है कि वह बंगाली ही हैं। बहुत ही खूबसूरत शहर है कोलकाता।

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चित्रांगदा सिंह
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
अरे नहीं, ऐसा नहीं है। अब तो मैं यहीं हूं काम भी कर रही हूं लगातार। बस मैं बहुत घूमती फिरती नहीं हूं। वह क्या कहते हैं, ‘स्पॉट’ नहीं की जाती हूं तो लोगों को लगता है कि मैं यहां नहीं हूं। मैं सिर्फ काम में यकीन रखती हूं। अभिनय से फुर्सत मिलती है तो लिखती हूं। कुछ नया रचने की कोशिश करती हूं।

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चित्रांगदा सिंह
– फोटो : इंस्टाग्राम @chitrangda
हां, ‘सूरमा’ भी तो लिखी थी आपने, इसकी सीक्वल की खूब चर्चा थी, उसका क्या हुआ?
‘सूरमा’ की मेकिंग अपने आप में एक अलग कहानी है। इस फिल्म को बनने का श्रेय बहुत कुछ दिलजीत दोसांझ को जाता है जिन्होंने इस फिल्म के लिए हां की। फिल्म अपने समय की सबसे बड़ी कमबैक स्टोरी है। ‘सूरमा’ का डीएनए भी यही है। ऐसी ही कोई और कमबैक स्टोरी मिली तो ‘सूरमा 2’ भी बनेगी। कहानियां परदे तक अपना रास्ता खुद बनाती हैं।