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Mother’s Day 2025: कारगिल में चाचा को गोली लगी, पर दादी रोई नहीं, गीतांजलि ने सुनाई मां के संघर्ष की कहानी

Mother’s Day 2025: कारगिल में चाचा को गोली लगी, पर दादी रोई नहीं, गीतांजलि ने सुनाई मां के संघर्ष की कहानी



हर साल मई के दूसरे रविवार को मनाए जाने वाले मदर्स डे पर अभिनेत्री गीतांजलि मिश्रा अपनी मां और अपनी दादी को याद कर रही हैं। चाचा की सरहद पर तैनाती के दौरान उनकी दादी के कहे बोल आज भी उनके लिए प्रेरणास्रोत हैं। गीतांजलि की बचपन बहुत कष्टमय रहा है और उन्हें बचपन से ही अपने पैर जमाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी है। सिंगल पैरेंट के रूप में उनकी मां ने भी खूब संघर्ष किया और बच्चों के सही पालन पोषण केलिए खुद मुंबई में फुटपाथ पर सब्जी तक बेची। मदर्स डे पर गीतांजलि से ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल की एक खास बातचीत। 




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अभिनेत्री गीतांजलि मिश्रा
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई


‘मां’, इस शब्द की प्रतिध्वनि आपके लिए क्या है?

मां एक ऐसा सपना है जो कभी टूटता नहीं, एक ऐसी खुशी जो कभी कम नहीं होती। मां जिंदगी का वह खजाना है जो कभी कम नहीं होता सिर्फ बढ़ता रहता है। वह हमें हमारी उम्र के नौ महीने से ज्यादा जानती हैं, यानी कि हमसे भी ज्यादा। इसीलिए, वह ईश्वर का दूसरा रूप कहलाती हैं। 


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अभिनेत्री गीतांजलि मिश्रा
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई


आपकी मां का बहुत कड़ा संघर्ष रहा है आप दोनों बहनों को बड़ा करने में..

मैं पांच साल की थी, तभी से मैं उनका संघर्ष समझने लगी थी। वह बहुओं के लिए लंबा घूंघट अनिवार्य होने वाले परिवार से रहीं। पापा नहीं रहे तो उन्हें लगा कि उनकी बेटियों की परवरिश ऐसे माहौल में नहीं होनी चाहिए। वही हम दोनों को लेकर मुंबई आईं। और, मुंबई में भी क्या क्या नहीं किया। सब्जी बेची, दूध बेचा। उनके संघर्ष ने ही हमें मजबूती दी और आज हम जहां हैं, वह उनकी इस मेहनत के चलते ही हैं।

 


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अभिनेत्री गीतांजलि मिश्रा
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई


किसी कामकाजी बेटी के लिए मां का समर्थन कितना जरूरी है?

मैं तो आठ साल की थी, तभी से कामकाजी हूं। मेरा मतलब है कि रसोई का सारा काम मैं तब से कर लेती हूं। लेकिन, आपने सही सवाल किया। हर कामकाजी बेटी के लिए पहला समर्थन उसकी मां ही होती है। यदि मां हौसला बढ़ाए तो आज हर बेटी अपने पैरों पर खड़े होना चाहती है। महिला सशक्तीकरण की ये एक ऐसी श्रृंखला है जिसे माएं और बेटियां ही आगे बढ़ाती चल सकती हैं। 


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अभिनेत्री गीतांजलि मिश्रा
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई


आपके घर में तो लोग सरहद पर भी रहे हैं, उस माहौल में दादी मां का हौसला कैसा रहा होगा?

हां, मेरे चाचा सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में रहे। कारगिल युद्ध के दौरान उनके दाहिने पैर में गोली लगी थी। अब भी वह कार्यरत हैं। मुझे याद है कारगिल युद्ध के दौरान हम सब साथ बैठकर खाना खाते थे और दादी चाचा की याद आने पर एक रोटी भी पूरी नहीं खा पाती थीं। रोती ही रहती थीं चाचा को याद कर करके। लेकिन, चाचा जब घर आए तो उनकी आंखों में एक भी आंसू नहीं था। बोलीं, मुझे अपने बेटे पर फख्र है कि उसने देश के लिए गोली खाई। गोली अगर सीने पर भी लगती तो भी मेरी आंखों में आंसू नहीं होते। 


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