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राकेश रोशन इंटरव्यू
– फोटो : अमर उजाला
एक बड़ी म्यूजिक कंपनी ने कुछ साल पहले हिंदी सिनेमा के दिग्गज संगीतकारों के गानों के संग्रह प्रकाशित किए तो राकेश रोशन को उसमें ढूंढे से भी अपने पिता रोशन के गाने नहीं मिले। बस वहीं से नींव पड़ी नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘द रोशन्स’ की। सीरीज के निर्माता राकेश रोशन से इसी सिलसिले में ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल की एक खास बातचीत।

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द रोशन्स
– फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
हिंदी सिनेमा को अपने संगीत, अपने निर्देशन और अपने अभिनय से रौशन करने वाले रोशन परिवार के दीये आज तक सबसे तेज जगमगा रहे हैं। आपको इस शब्द की या इस नाम की अहमियत पहली बार कब समझ आई?
मेरा असली नाम राकेश नागरथ है। मेरी पढ़ाई इसी नाम से हुई। तमाम सरकारी कागजात पर अब भी मेरा यही नाम है। ये उन दिनों की बात है जब मै फिल्मों में सहायक निर्देशक का काम तलाश रहा था। नाज सिनेमा बिल्डिंग में सारे निर्माताओँ के दफ्तर हुआ करते थे और मैं वहां काम मांगने जाता तो दफ्तर के कर्मचारियों से कहता कि साहब को बोलो, रोशन साब के बेटे आए हैं मिलने। लोग मुझे बुलाते। कुर्सी से खड़े होकर हाथ मिलाते। बड़ा सम्मान देते। इस नाम की मैंने इतनी महत्ता देखी तो इसे अपने नाम के साथ जोड़ लिया।

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आप की उम्र 75 साल है और जब आपके पापा गुजरे तो आप बस बालिग हुए ही थे। ये बीते छह दशक जो बिना पिता के आपके बीते हैं, उनका संघर्ष कितनी बड़ी चुनौती रही आपके लिए?
संघर्ष तो अब भी है। बीते 70 साल से चला आ रहा है। आगे भी चलता ही रहेगा। जीवन में संघर्ष निरंतर है। अभी बात होती है क्या बनाऊं? ‘कृष 4’ की बात होती है तो उसको भी बनाने पर बात होती है कि लोगों को पसंद आएगी कि नहीं, आएगी। तो चुनौती तो है, वही जीवन है।

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18 फिल्में बना चुके निर्माता राकेश रोशन के लिए क्या चुनौती हो सकती है? क्या ये चुनौती निर्देशक राकेश रोशन की फिल्म के 1000-1500 करोड़ रुपये कमाने की है?
हमें पैसे कमाने के लिए फिल्म नहीं बनाना है। ऐसा हम कभी नहीं करेंगे। हमारा डर ये है कि लोग हमें कैसे याद करेंगे? हमने 15-16 फिल्में बनाई हैं। एक निर्देशक को लोग उसकी आखिरी फिल्म से याद करते हैं। मैं नहीं चाहता कि लोग मुझे एक फ्लॉप फिल्म के निर्देशक के रूप मे याद करें।

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आपके पिता रोशन की संगीतबद्ध फिल्म ‘सूरत और सीरत’ के गाने ‘बहुत दिया देने वाले ने तुझको’ के पहले जो बांसुरी बजती है, वही आपकी फिल्म ‘करण अर्जुन’ के गाने ‘ये बंधन तो प्यार का बंधन है’ की धुन बनी है। आपको संगीत से कितना लगाव है? कभी आपने भी कोई गाना लिखा या कंपोज किया?
‘सूरत और सीरत’ के गाने की जहां तक बात है, ये राजेश को पता होगा। मुझे नहीं लगता कि हमने ‘सूरत और सीरत’ फिल्म के किसी गाने से कोई धुन ली होगी। संगीत की बात करें तो हां, मैं गिटार बजाता हूं। पियानो बजाता हूं। फिल्मों का संगीत तो हम सब मिलकर ही तैयार करते हैं। लेकिन, अगर किसी एक गाने की ही बात करूं तो ‘प्यार की कश्ती में’ की धुन मेरी बनाई हुई है। ये गाना भी मेरा लिखा हुआ है।